एक
मुलाकात समजा के ठेकेदारों से.....सोचा आपके साथ शेयर करूं...समाज के एक बुद्धीजिवी
है जो समाजीक मान्यताओं और परंपराओं को लेकर काफी कट्टर है औऱ उनका मामना है की
समाज में चले आ रहे इन्हीं मान्यताओं के कारण आज समाज संगठित है......उनके इन
विचारों को सुनने के बाद मेरा भी मन था की कुछ समाजिक ज्ञान उनसे ले लू ....सो एक
दिन मुझे उनके साथ थोड़ा समय बिताने सौभाग्य मिला चुंकि उनके बारे में लोगो से
काफी सुन रखा था औऱ समाजिक संगठन में एक बड़े पद पर भी है सो उनसे मिलने की
दिल्चस्पी काफी थी...तो एक दिन सौभाग्य से हम मार्केट कुछ समान लेने दोनों साथ में
ही गये .....रास्ते में नगर निगम के गार्डन पर कुछ प्रेमी जोड़ो को बैठे देख कर
उन्होने कहा देख रहे हो आज कल के संस्कार कितना बिगड़ चुका है आज के युवाओं का
शर्म और लज्जा से दूर दूर तक कोई संबंध नही है...मुझे ये बताते हुआ वो आगे चले...
आगे जाने पर उन्हे बाथरूम लगा औऱ वो एक दीवार के पास किनारे पर जाकर पेशाब
कीया....मुझे ये देखर कर बड़ा अजीब लगा कि उनकी तरह सूझबूझ वाला आदमी ऐसी आसामाजिक
काम कैसे किया उनसे पूछने पर की सार्वजनिक जगह पर पेशाब करना भी तो असमाजिक है
जवाब था ये पुरूष प्रधान समाज है औऱ उनको ये आजादी है.......उनके साथ समय बिताने
पर एक बात का मुझे पता चला कि ... समाज के ज्यादर नियम सिर्फ औरतों को काबू में
रखने के लिए बनाये गये है.....मर्यादा और संस्कार का सारा बोझ सिर्फ औऱतो पर
है.........एक बात तो तय है कि सावर्जनिक स्थान पर मूतना की आजादी है पर किसी को
सार्वजनिक स्थान पर चूमने की नहीं.....हीरोइनों कपड़ेप पहने तो फैंसन पर कॉलेज औऱ
स्कूल की लड़किया कम कपडें पहने तो वो असभ्यता है......मर्द खुद तो बैंकाक, नागपुर
और कोलकाता जैसी जगह का खिलाड़ी है पर बीवी उनको वर्जिन चाहिए..........?
बस इतना सा..
सोंच को शब्दों में उकेरने की एक कोशिस ........
Tuesday, September 15, 2015
Wednesday, May 15, 2013
self Marketing
Today every were i seeing people like to promote himself very much because he want to send massage to i am such very active person and trying to spreed his work all his here about......some time i think its not bad because today condition is like this to promote him self every where not like any politician its just your presentation in crowd ......and if you want to make any space in crowd so that you should promote your self in here otherwise your self identity can go to dim .
for promotion today has several way available like Facebook.social event in your office and society etc, so keep your self active in here for your identity .
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Saturday, November 5, 2011
joy of life
What event when you joy a lot its very rare I know but one think I want to say joy is not depend on any kind of event….it just like a excuse to be happy because every second and every hour will be bring joy for you for this just you have to do little extra effort … you have power to make your time joy full tray to be honestly enjoy your every time of your life because happiness and sadness is part of life and wise man never be fill anything about this…..so always tray to enjoy and live your life honestly that after you will see life would be beautiful for you and not loose your hope also .
Monday, January 3, 2011
Tuesday, December 28, 2010
व्यवहार
किसी ने मुझ से कहा था कि आदमी की व्यवहार किसी घड़ी के जैसे होता है कई लोग हाथों में घड़ी पहते है लेकिन हर घड़ी अलग अलग समय बतायेगी चाहे उसके समय दिखाने का अंतर कुछ मिनटों का हो या कुछ सेंकंड का लेकिन वो एक सा समय नहीं दिखाती फिर भी घड़ी पहनने वाले को लगता है कि वो सही समय देख रहा है उसी तरह अदमी का अपना व्यवहार भी होता है लोगो को लगता है वो जो कर रहा है वो सही है लेकिन क्या वो वास्तव में सही होता है क्योंकि उसकी नजर में वो सही कर रहा है लेकिन.....?
जैसे एक बार गांधी जी एक सभा में भाग लेने के लिए कोलकाता जा रहे थे वो कोलकाता जाने वाले ट्रेन पर बैठ गये और बर्थ में लेट गये उसी ट्रेन में एक गाधी जी का प्रशंसक भी चड़ा जो गांधी जी को देखने के लिए कोलकाता के सभा में जा रहे थे.चुंकि वो आदमी कभी गांधी जी को करीब से नहीं देखा था सो उसने ट्रेन के बर्थ में सोये गांधी जी को नहीं पहचाना और उसे बर्थ से उठा कर कहा की यहां बैठने के लिए जगह नहीं हो है और तूम सो कर जा रहे है उठ कर बैठे और हमें भी बैठने दो.गांधी जी उठ कर बैठ गये और वो मुशाफिर भी गांधी जी के बगल में बैठ गया.कोलकाता स्टेशन में भारी भीड गांधी जी के आने का इंतेजार कर रही थी जब ट्रेन स्टेशन में पहुंचा तो लोगो ने गांधी जी जिंदाबाद के नारे लगाने लगे और जब गांधी जी स्टेशन में उतरे तो लोगो ने उसे कंधे पर उठा लिय औऱ तब उसके साथ बैठे गांधी जी के दर्शन के इच्छुक व्यक्ती ने ये देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ किया जिस व्यक्ती के दर्शन के लिए वो इतनी दूर आया वो तो उसके साथ ही यात्रा किया और उसने उसके साथ ट्रेने में ठीक व्यवहार नही किया ये सोचकर उसे बड़ा खराब लगा। लेकिन उसे ये बाते गांधी जी की भा गई की इतनी महान होने के बाद भी वो इतने सरल स्वभाव के थे,उसे इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि कोई आदमी इतना विनम्र कैसे हो सकता है ।
Saturday, November 27, 2010
Friday, October 22, 2010
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