Tuesday, November 17, 2009

दिल है तो पडें........

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में


फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उसके आशियाने में


दूसरी कोई लड़की ज़िन्दगी में आयेगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में
मैं भी शायद बुरा नहीं होता
वो अगर बेवफ़ा नहीं होता

बेवफ़ा बेवफ़ा नहीं होता
ख़त्म ये फ़ासला नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज-कल दिन में क्या नहीं होता

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

ये किसी शायर की अनुपम कृती है सामन्य तैर पर पडे तो शायद ये एक अच्छी कविता है मगर इस पर विचार किया जाय तो एक बहुत अच्छी सोच।



हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन,
के जिसके बादलों की पालकी उडा रहा पवन,
दिशायें देखो रंग भरी.....,
चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे ......किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है? ये कौन चित्रकार है?
ये कौन ...............................चित्रकार है?

तपस्वीयों सी है अटल ये पर्वतों की चोटीयां,
ये सर्प सी घुमेरदार घेरदार घाटियां,
ध्वजा से ये खडे हुए .....है वृक्ष देवदार के ,
गलीचे ये गुलाब के बगीचे ये बहार के ,
ये किस कवि की कल्पना .....का चमत्कार है,

ये कौन चित्रकार है? ये कौन चित्रकार है?

कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो,
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमा ....अपने ललाट की,
कण कण से झांकती तुम्हे छवि विराट की
अपनी तो आंख एक है, उसकी हज़ार है.
ये कौन चित्रकार है? ये कौन चित्रकार है?
ये कौन ..............................चित्रकार है?