Tuesday, December 28, 2010

व्यवहार


किसी ने मुझ से कहा था कि आदमी की व्यवहार किसी घड़ी के जैसे होता है कई लोग हाथों में घड़ी पहते है लेकिन हर घड़ी अलग अलग समय बतायेगी चाहे उसके समय दिखाने का अंतर कुछ मिनटों का हो या कुछ सेंकंड का लेकिन वो एक सा समय नहीं दिखाती फिर भी घड़ी पहनने वाले को लगता है कि वो सही समय देख रहा है उसी तरह अदमी का अपना व्यवहार भी होता है लोगो को लगता है वो जो कर रहा है वो सही है लेकिन क्या वो वास्तव में सही होता है क्योंकि उसकी नजर में वो सही कर रहा है लेकिन.....?

                                                              जैसे एक बार गांधी जी एक सभा में भाग लेने के लिए कोलकाता जा रहे थे वो कोलकाता जाने वाले ट्रेन पर बैठ गये और बर्थ में लेट गये उसी ट्रेन में एक गाधी जी का प्रशंसक भी चड़ा जो गांधी जी को देखने के लिए कोलकाता के सभा में जा रहे थे.चुंकि वो आदमी कभी गांधी जी को करीब से नहीं देखा था सो उसने ट्रेन के बर्थ में सोये  गांधी जी को नहीं पहचाना और उसे बर्थ से उठा कर कहा की यहां बैठने के लिए जगह नहीं हो है और तूम सो कर जा रहे है उठ कर बैठे और हमें भी बैठने दो.गांधी जी उठ कर बैठ गये और वो मुशाफिर भी गांधी जी के बगल में बैठ गया.कोलकाता स्टेशन में भारी भीड गांधी जी के आने का इंतेजार कर रही थी जब ट्रेन स्टेशन में पहुंचा तो लोगो ने गांधी जी जिंदाबाद के नारे लगाने लगे और जब गांधी जी स्टेशन में उतरे तो लोगो ने उसे कंधे पर उठा लिय औऱ तब उसके साथ बैठे गांधी जी के दर्शन के इच्छुक व्यक्ती ने ये देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ किया जिस व्यक्ती के दर्शन के लिए वो इतनी दूर आया वो तो उसके साथ ही यात्रा किया और उसने उसके साथ ट्रेने में ठीक व्यवहार नही किया ये सोचकर उसे बड़ा खराब लगा। लेकिन उसे ये बाते गांधी जी की भा गई की इतनी महान होने के बाद भी वो इतने सरल स्वभाव के थे,उसे इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि कोई आदमी इतना विनम्र कैसे हो सकता है ।

Saturday, August 28, 2010

सोंचते रह जाओगे...

आसान से लगने वाले सवालों के जवाब कितने कठिन होते है इसका उदाहरण आप को आज बताने जा रहा हूं.दरसर एक क्विज कांटेस्ट देख रहा था इस क्विंज कांटेस्ट का ये फाइनल मुकाबला था जिसमें तीन प्रतिभागी इस फानल राउंड में पहुंचे थे.जज को इन तीनो प्रतियोगी से तीन तीन सवाल पूछना था तथा जिसका उत्तर सबसे अच्छा होता वो ये फाइनल का विजेता होता. स्टूडियों में इन प्रतियोंगी के मां बाप भीई बहन और सारे दोस्त भी मौजूद थे और ये सभी इस प्रोग्राम को लाइव देख रहे थे.इस सब से दुर ये तीनो एक बंद कमरे में बैठे थे जजों ने बारी बारी से इन सभी को बुला कर एक ही प्रकार के सावल पूछे गये।


आप जानना चाहेंगे ये तीनों सवाल क्या थे वो तीनो सवाल इस प्रकार थे :

1.अगर इस दुनिया का चप्पा चप्पा हर एक चीज आप की हो .तो आप अपने किसी प्रिय दोस्त को क्या दोगे और कितना दोगे.

2. अगर आप लड़की होते तो इस स्टूडियों में बैठे आपके दोस्तों में से आप किस दोस्त के साथ फिजिकल रिलेशन रखना पसंद करोंगो और क्यों।

3.तीसरा और अंतिम सवाल था कि आगर साक्षात भगवान आपके सामने आये और कहे कि आज आपके माता –पिता दोनो की मौत तय लेकिन तुम्हारे पुण्य प्रताप के चलते दोनो में से किसी एक की जान आज बच सकती है आपको बताना हि पडेगा कि दोनो मे से किस की जान बख्स दू और किसकी जान लूं और क्यों.



इन तीनो सवालों का उत्तर देना अनिवार्य था तथा प्रतियोगी पलट कर जजों से सवाल भी नहीं कर सकते थे.इन तीनो सवालों का बारी बारी से तीनो प्रतियोगी ने जवाब भी दिया तथा एक प्रतियोगी जीता भी था.

अब आप सोंच रहे होंगो कि इस सवाल का जवाब क्या होगा लेकिन इससे पहले आप जरा सोचिए कि क्या होगा इसका जवाब क्योंकि इसके जवाब के लिए थोड़ा इंतेजार करना पड़ेगा.

Monday, August 23, 2010

अपना अपना वजूद...

कभी अपनो के बीच तो कभी अपने आस पास के लोगो को बीच अपनी वजूद का अपनी मौजूदगी का ऐहसास बहूत मुश्किल होता है. अपने आप को भीड़ से अलग करना.खास कर तब जब आप आपने लिए कुछ औऱ सोंच कर रखें हो और आप अपनी पहचान के लिए भटक रहें हो.जब आप को लगता है कि आप उन सामान्य लोगों में से नहीं हो.आप चाहते हो कि लोग आपको आपके नाम और काम से जाने आपकी अपनी एक छवी हो......लेकिन सवाल ये उठता है कैसे आप आपनी मौजूदगी का ऐहसास करायें कैसे अपने काम से अपनी टैलेंट से भीड़ से हटकर दिखे......
ये सवाल सुनने में जितना आसान है उतना ही करने में मुश्किल । इतना तो तय है कि अगर आप में टैलेंट है तो निश्चित तौर पर आप उन लोगों से अलग है लेकिन टैलेंट होना काफी नहीं होता.आपको भीड़ से अलग करने के लिए अपनी खुद की मार्केटिंग करनी भी आनी चाहिए.अपनी खुद की मार्केटिंग करना एक कला है जो सब में नहीं होता इसके लिए आपको आधूनिक चटूकारिता का अभ्यस्त होना होगा.आधुनिक चटूकारिता का मतलब आपको काम का पुरा श्रेय लेना से है औऱ उस श्रेय की सफलता को सहीं लोगो तक पहुंचा के तरिकों से हैं.ये जो आधूनिक चटूकारिता का काम है वो थोड़ा मुश्किल है क्योंकि मुझे लगता है टैलेंट तो अपने आप में पैदा भी किया जा सकते है लेकिन आधूनिक चटूकारिता तो जन्मजात गुण होता है जिसे आप अचनाक आपने आप में पैदा नहीं कर सकते....

कहते हैं कि किसी के होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता....लेकिन मेरा मानना है आपके होने ना होने का फर्क पड़ना चाहिए तभी आप अपना वजूद जिंदा रखा जा सकता है और अपनी वजूद को जिंदा रखने कि जद्दोजहद बहुत लंबी होती है ।

Tuesday, August 17, 2010

दोस्ती वोस्ती एक्सेक्ट्रा.......

मशहूर शायर बशीर बद्र साहब ने लिखा है कि “ परखना मत परखने में कोई अपना नहीं होता , देर तक आइने में चेहरा अपना नहीं होता ” अब बशीर साहब के हिसाब से किसी को पऱखना नहीं चाहिए अब यार मेरी बड़ी अजीब समस्य है कि मैं अपने दोस्तों के लिए जो करता है चाहे वो मेरा व्यवहार हो या दोस्ती निभाने के कायदे कानून हो और उम्मीद करता हूं कि बदले में उसकी भी सोच औऱ व्यवहार मेरे जैसे हो...लेकिन ऐसा संभव नहीं होता और मुझे बड़ा दुख होता है । मैं ये भी जानता हूं कि ऐसा जरुरी नहीं कि किसी के लिए आप निश्चल और साफ हो तो वो आप के लिए भी वैसा हि सोंचे। लेकिन एक उम्मीद तो होती है ना औऱ जब वह उम्मीद टूटती है तो बड़ा खराब लगता है ऐसा मेरे साथ अनेको बार हो चुका है फिर भी आज भी मैं अपने दोस्तों को अपने हिसाब से ढालने की कोशिस करता हूं। मैं यहां य़े नहीं कह रहा हूं कि मैं बहुत अच्छा दोस्त हूं लेकिन अपने समझ के हिसाब जो मुझे सहीं लगता है वो मैं करता हूं.....मेरे इसी व्यवहार के चक्कर में मेरी एक सीमित दुनिया बन गई है औऱ उसमें काफी कम लोग है जिसके साथ में कंफर्टेबल या सामान्य महसूस करता हूं ।
सोंचत हूं कि मुझे अपने आस पास के सभी लोगों के साथ दोस्ती बड़ानी चाहिए। लेकिन मेरी लाख कोशिस के बाद भी सामान्य ढंग से मैं उन लोगों के साथ सहज महसूस नहीं कर पाता. अब मैने इस बात के लिए अपने आप को समझा चूका हूं कि ये दोस्ती वोस्ती मेरे बस की बात नहीं. मेरी एक सीमित दुनिया है और यहीं मेरे लिए काफी है.कहने के लिए तो मैं आम लोगो से आज भी मिलता हूं और सामान्य आदमी की तरह पेश आता हूं लेकिन फिर भी मैं कहना चाहता हूं कि उनसे पुरी तरह से दिल नहीं जोड़ पाता।

Saturday, July 31, 2010

कॉमनवेल्थ गेम या बर्बादी.....

कुछ दिनो बाद हमारे देश में कॉमनवेल्थ गेम शुरू हो जाएगे जिसकी उलटी गिनती चल रही है...दिल्ली में इसके तैयारी बड़ी जोर शोर से चल रही है सरकार ने कई स्तरों पर समीतिया गठित कि है हजारो करोंड रुपय खेल विभाग को दिया है इस गेम को सफल बनाने के लिए. लेकिन इस आयोजन के कुछ पहलूओं पर मैं आपका ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूं .........
आपको मालूम होगा कि कॉमनवेल्थ गेम उन देशों में होता है जो कभी इंग्लैड के गुलाम हुआ करते थे मतलब हमारे देश को आजाद हुए 61वर्ष बीत चुके है लेकिन लगता है कि हमारे नेता हमें गुलामी की उस पीड़ा की भूलने देंगें. क्या ये नेता भूल गये है कि इसी इंग्लैंड के शासन से देश को आजाद करना के लिए हमारे देश के सैंकड़ो देश भक्त आपनी प्राणों की आहूती दे चुके हैं । करोंड़ो देश वाशियों के उस दर्दनाक जख्म को फिर से याद दिलाने की कोशिस है कॉमनवेल्थ गेम। चलो मैं ये भी मान लू कि अब परिस्तिथी काफी बदल चुकी है लेकिन जिस देश में आज भी 40 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा ने नीचे आते है और जो दो वक्त की रोटी ,स्वास्थ सुविधोओं जैसी मुलभूत समस्याओं के लिए संघर्ष कर रही हो उस जैसे देश में खेल के नाम पर 35 हजार करोंड रुपय फूंक दिया जाए तो ये कहां तक सही है क्या इससे हमारे देश की समस्या में कमी आयेगी या हमारे देश का नाम रोशन होगा। कुछ भी नहीं तो फिर ऐसे व्यर्थ के आयोजन करने से क्या लाभ। 35 हजार करोंड रुपय जैसे भारी भरकम रकम को खेल कूद जैसे आयोजनों में खर्च करना कहां तक सहीं है इतनी रकम इस खेल के लिए जरूरी है या फिर हमारे देश के जरुरत मंद लोगो के उत्थान के लिए। शायद मैं अपनी शब्दों से लिख कर बता ना पाऊ लेकिन कभी आप उन गरीब बस्ती में जा कर देखे तो समस्या की भयवाहकता का आपको सहज अंदाजा होजाएगा. किसी सरकारी अस्पताल में बिलखते परिवार को देखे जो अपने किस परिजन के इलाज के लिए अस्पताल के एक कोने में परिवार के सदस्य के ठीक होने का इंतजार कर रहा होता है इस तरह पता नही कितनी ही गंभीर समस्याओं से घिरों देश के नागरिकों को इस कॉमनवेल्थ गेम के झूटी शान से क्या मिलने वाला है
मैं यहां सिर्फ इतना बताना कहना चाह रहा हूं कि हमारे देश में जहा आधारभूत चिजों को लिए लोगो को इतना संघर्ष करना पड़ता हो उस देश में इस तरह के व्यर्थ आयोजनो से क्या लाभ ना तो इससे हमारे देश का भला होने वाला है ना हि हमारे देश के नागरिकों का........।

Friday, July 30, 2010

बस इतना सा..: आस्था ने नाम पर ......

बस इतना सा..: आस्था ने नाम पर ......: "वैसे तो हम सभी जानते है कि 100 करोंड़ से अधिक आबादी वाले हमारे भारत देश में लोगों के आस्था के कई रुप देखने को मिलते है ऐसे ही कुछ देवी देवता..."

बस इतना सा..: यार ये Passion क्या बला है....

बस इतना सा..: यार ये Passion क्या बला है....: "हाल हि कि सुपर हिट फिल्म थ्री इडिट देखी.पुरी फिल्मी काफी आच्छी थी खैर मैं आपको फिल्म की स्टोरी नहीं सुनाने वाला हूं दरसल इस फिल्म का एक डॉयल..."

Monday, July 26, 2010

बस इतना सा..: एक सोंच जो बदल दे आपकी दुनिया.........

बस इतना सा..: एक सोंच जो बदल दे आपकी दुनिया.........: "एक किस्सा आपके साथ बांटना चाहता था क्योंकि ये किस्सा मुझे हमेशा कुछ अच्छा और बेहतर करने की प्रेरणा देता है ये किस्सा शायद आपको भी अच्छा लगा।..."

आस्था ने नाम पर ......

वैसे तो हम सभी जानते है कि 100 करोंड़ से अधिक आबादी वाले हमारे भारत देश में लोगों के आस्था के कई रुप देखने को मिलते है ऐसे ही कुछ देवी देवताओं से आज मैं आपको मिलवाने जा रहा हूं। आपने देखा हि होगा लोग आस्था के चक्कर में भगवान का अस्तितव की तलाश हर चीज में करने लगते है।

आज आपको आस्था के कई पहलूं से अवगत करा रहा हूं सबसे पहले बात करते है गुजरात के पाटन छेत्र में स्तिथ चुड़ौल देवी कि...भक्तो का मानना है कि यहां इस्तिथ चुड़ौल माता की मंदिर लोगो को प्रेत बाधा और चुड़ौल जैसे आपदा से ऱक्षा करती है। ठीक है आस्था की कोई परिभाषा नहीं होती तो ये भी संभव होगा। ऐसे ही एक मंदिर है मध्यप्रदेश की चित्रकोट में खटखटा चोर देव का मंदिर। यह एक चोरदेव का मंदिर है औऱ ये चोर देवता लोगों के पांपो को चुराते है। जय हो चोर देवता कि......लोग भगवान को किन किन रूपों में देखते है उसका उदाहरण राजकोट में एक चॉकलेट देवी का मंदिर है यहां लोग भगवान को फास्ट फूड का भोग लगाते है प्रसाद के रुप में पानी पुरी और चॉकलेट का चड़ावा चड़ाते है। क्षमा चाहूंगा लेकिन ये आधूनिक भारत के शायद ये आधूनिक भगवान होंगे जो चॉकलेट और गुपचूप जैसे चटखरेदार भोग करतें है.
लोगो के जरुरत के हिसाब से भी भगवान हमरे देश में मौजूद है एक ऐसे हि भगवान मवजूद है जो स्पेशल पुजा पाठ से नौकरी औऱ प्रमोशन दिलाते है जी हां एक ऐसे ही मंदीर जयपुर के स्तिथ है जिसको लोग रोजगारेश्वर देव के नाम से जानते है औऱ लोगो का मानना है भगवान रोजगारेश्वर उनको रोजगार दिलायेंगें तथा जो लोग नौकरी कर रहे है उनको वो प्रमोशन दिलाऐंगे। ये तो लोगों के आस्था का एक नमूना मात्र है । लगता है भगवान का स्वरूप लोगो के जरुरत औऱ मांग के हिसाब से होता है। ऐसे लगता है मानो आस्था के इस सारे प्रपंच का उद्देश्य सिर्फ एक ही है कि कैसे भी करके भगवान खुस हो जाएं और उन्होने जो अपनी मांग या डिमांड की जो लंबी लिस्ट भगवान को दे ऱखा है वो पुरा हो जाए। या कहें तो एक प्रकार से भगवान को खुलेआम रिस्वत देने का काम चलता है।

आजकल इसका फायदा मोबाईल कंपनियां भी उठा रही है ऐसे हि मामला मैने देखा जब मेरे मोबाईल फोन पर मेरे दोस्त का एक मैसेज आए जिसमें साई वावा के नाम पर कुछ श्लोक लिखा थे औऱ नीचे लिखा था कि ये मैसेज 25 लोगो को भेजों तो उस दिन अच्छी खबर मिलेगी नहीं कुछ बुरा हो सकता है । खैर मेरे दोस्त नें मुझे औऱ मुझ जैसे 25 लोगों को ये मैसेज भेजकर अपना काम को कर लिया अब उसको खुशखबरी मिली की नहीं ये तो नहीं मालूम अब चुंकि मैंने भी अपने मोबाईल पर ये मैसेज पड़ चुका था तो सोंचा कि भगवान आजकल कितना हाईटेक हों गये है जो मैसेज के द्वारा आपना प्रचार कर रहे है। खैर मैने तो ऐसा नहीं किया। लेकिन लोग ये बात समझे तब ना।

लोगो को भगवान के नाम पर डराकर जो लोग अपनी रोटी सेंक रहे है वो तो दोषी है हि मैं उन लोगो को भी दोषी मानता हू जो लोग उस परमशक्ति को इन बेकार की ढकोसलों से आपना स्वार्थ पुरा करने के लिए रिस्वत देने की कोशिस रहते है। मै सिर्फ इतना कहना चहाता हूं कि वो परमशक्ति जो स्वंयम इस सृष्टि का विधाता है उसकी अराधना के लिए ये व्यर्थ के ढकोसलों की कोई जरूरत नहीं हैं।

Friday, July 23, 2010

एक सोंच जो बदल दे आपकी दुनिया.........

एक किस्सा आपके साथ बांटना चाहता था क्योंकि ये किस्सा मुझे हमेशा कुछ अच्छा और बेहतर करने की प्रेरणा देता है ये किस्सा शायद आपको भी अच्छा लगा।


एक छात्र था जो पांचवी के कक्षा में पड़ाइ करता था उस छात्र को अपनी गणित के शिक्षक से बड़ा डर लगता है क्योंकि उसे लगता था कि गणित बहुत गठीन विषय है और वो गणित में कमजोर है। उसे आए दिन कक्षा में गणित के नाम पर टीचर की मार और ड़ाट खाना पड़ता था उसके मन में ये बात घर कर गई थी कुछ भी हो जाए गणित उससे नहीं बन पायेगी और इसी के चलते वो लड़का गणित के क्लास में ध्यान नहीं देता था और दुसरी खयालों में खोया रहता था एक दिन गणित के क्लास में वो खिड़खी कि तरफ देखते अपनी खयालों में खोया हूवा था। तभी अचानक घंटी की अवाज आयी और उसका ध्यान टुटा. अचनाक जब ब्लैक बोर्ड में देखा तो वहां तीन सुत्र लिखा हुवा था। चुकिं क्लास में उसका ध्यान नहीं था सो वो टीचर की बातें नहीं सुन पाया था ।उसने ये तीनो सुत्र अपनी कापी में लिख कर घर चला गया। अगले दो दिन स्कूल की छुट्ठी थी तो उसको लगा कि टीचर ने ये सुत्र दो दिन के छुट्टी में होमवर्क के रुप में हल करने के लिए दिया है। अब घर पर वह दिये हुए सुत्र को हल करने की कोशिस करने लगा । चुंकि सुत्र काफी कठीन था औऱ टीचर के मार के डर के चलते पुरी जोर सोर से उस गणित के सुत्र को हल करने लगा । काफी मशक्कत के बाद उस छात्र ने दो सुत्रों को हल किया मगर तीसरा सुत्र हल नहीं कर पाया । जब छुट्टी के बाद वो छात्र स्कूल पहुंचा तो पहले से हि वह गणित के टीचर के पास कापी लेकर चला गाय क्योंकि वो जानता था कि सबसे पहले टीचर उसी से पुछेगा।

“उसने टीचर को कापी देकर कहा कि सर कृपया मुझे माफ कर दें मैं दो हि सुत्र हल कर पाया ....तीसरा सुत्र हल नहीं हो पाया. सर कृपया मुझें मारना मत में आग से पुरा गणित हल कर के लाउंगा।
टीचर : टीचर को कुछ समझ नहीं आया उसने छात्र को डांटते हुए कहा कि क्या बकवास कर रहे हो.मैने कोई सवाल दिया हि नहीं था तो तुम क्या हल कर के लाए हो.


छात्र को लगा कि टीचर मजाक उडा रहे हैं सो उसने फिर से कहा सर इस बार मुझे माफ कर दें अगली बार में पुरा सवाल हल कर के लाउंगा। छात्र के चेहरे में डर देखते हुए टीचर नें उसकी कापी चेक किया औऱ हदप्रभ रह गए.उसने छात्र से पुछा ये तुमने क्या किया छात्र ने डर के मारे फिर से गिडगिड़ाने लगा कि पता नहीं अब क्या गलती कर दी। छात्र ने कहां सर कृप्या मुझे माफ कर दें मैं दो सवाल हि हल कर पाया अगली बार मैं पूरा सवाल हल कर के लाउंगा। टीचर ने पुछा क्या ये सवाल तुमने ही हल किया है तो डरते हुए छात्र ने कहा हां सर मैने किय हल किया है। टीचर नें उससे पुछा तुझे पता है तूने क्या कर दिया है मैं जब ये सुत्र क्लास में लिखा रहा था तो तुम्हारा ध्यान कहां था तुमने सुना था मैंने क्या कहा था छात्र नें कहा नहीं माफ किजिएगा मेरा ध्यान क्लास में नहीं था तब उसके टीचर ने बताया कि ये सुत्र ब्लेक बोर्ड में लिख कर ये बताया था कि गणित के ये तीन सुत्र दुनिया मैं गिनती के लोग ही हल कर पाये है या इस सुत्र को समझा पाए है और तुमने उन तीन सुत्र में से दो को हल कर दिया है और मैं हैरान इस कारण से हूं कि एक पांचवी क्लास का लड़का गणित के इतने कठीन सुत्र को हल कर दिया ।
मैं आपको बता दूं कि पांचवी का ये छात्र कोई औऱ नहीं हमारे देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति और परमाणू वैज्ञानिक ए.पी. जे अब्दुल कलाम जी थे।

क्लास के बाकी छात्रों ने ये प्रयास ही नहीं किया क्योंकि उन लोगों ये टीचर से ये सुन रखा था किय ये तीन सुत्र दुनिया में बहुंत हि कम लोंगो ने हल करने में सफलता प्राप्त किया है तो उनके हल करने का सवाल हि पैदा नहीं होता। आम जिन्दगी में भी लोग बड़े या कठिन कामों को करने से हमेसा हिचकिचाते है क्योंकि उनको पता होता है कि ये काम किसी ने नहीं किया तो हम कैसे कर पाएंगे। कुछ लोग सोचते है कि भगवान ने फला व्यक्ति को ज्यादा दिमाग दिया या ज्यादा होशियार बनाया है मगर ऐसा नहीं।
मैं यहां इस किस्से के जरिए सिर्फ इतना हि कहना चहाता हूं किसी कि भी बुद्धि ज्यादा या कम नहीं होता या कहें कि किसी में ज्यादा या किसी में कम क्षमता होती है ऐसा भी नहीं है क्योंकि हमें जीवन दिने वाले उस परम पिता परमेश्वर ने किसी को भी बुद्धि क्षमता देने में कोई भेदभाव नहीं किया है और सभी को समान रुप से दिमाग दिया है फर्क सिर्फ इतना है कि हम इस क्षमता का कितना उपयोग करते हैं।

Friday, February 19, 2010

छोटी सी बात....

सच में मुसीबत बोल के नहीं आती लेकिन कभी कभी हम मुसीबत के खुद जिम्मेदार होते है ऐसा ही एक घटना मेरे साथ हुआ। 18 जनवरी के रात सामान्य दिनो की तरह मैं आफिस से घर के लिए निकला काफी देर हो चुकी थी रात के 10 बज रहे थे अपनी कान में इयर फोन लगाया अपनी हि धुन में मै जा रहा था या कहुं कि इयर फोन में गाना सुनते सनुते मेरा ध्यान गाडी चलाते सड़क पर नही था अचानक सड़क पर एक बुलडोजर का तुकड़ा दिखा उससे बचने के लिए मैने जोर से ब्रेक लगाया और मेरी गाड़ी स्लीप हो गइ। गाड़ी स्लीप होने पर जैसे मेरे होश गुम हो गाय और जब मेरी आंख खुली तो पता चला कि मै अस्पताल के बेड पर लेटा हुं थोड़ी देर के लिए मैने सोचो कि मै अस्पताल में कैसे पहुंच गया मगर पुछने पर पता चला कि मेरे बड़े भाइ औऱ दोस्तो ने मुझे अस्पताल पहुंचाया और मेरा मेजर एक्सीडेन्ट हो गाया है मुझे अपने आप पर गुस्सा आया कि मेरे थोड़े से लापरवाहि के चलते मैं इस हादसे का शिकार हो गाया जिसका पुरी जिम्मेदार भी मैं था आप सोच रहे होंगे कि सड़क पर बुलडोजर के चलते हुवा एक्सीडेन्ट के लिए पुरी तरही मै कैसे जिम्मेदार हुं तो मै आप को बता दु ये एक्सिडेन्ट का कारण. उस दिन मै आफिस के एक दोस्त के साथ ड्रीन्क ले लीया था और ड्रीन्क लेने के बाद गांड़ी चला रहा था हुवा युं कि शाराब पीकर और कानो में इयर फोन लगाकर गाड़ी चलाते मेरी ध्यान भटका औऱ ये हादसा हो गाया हालांकि ये पहनी बार नहीं है कि मैने शराब पी हो और गांड़ी चला रहा था मगर लगता है कि मै हादसे की तैयारी काफी समय से कर रहा था क्योंकि पहले भी मैं शराब पी कर और कई बार गाड़ी ड्राइव कर चुका था औऱ इस बात से बेखबर कि कुछ नही होगा गाडी लापरवाहि से चलाता रहा और इसी का नतीजी है जो मै अभी तक भुगत रहां हुं जब मै ये ब्लाग लिख रहा था तभी भी मै पुरी तरह से ठीक नहीं हुवा था ।
इस हादस से मेरे दांतो में देड़ माह के लिए तार लग हुवे है और मै सिर्फ लिक्विट खाने पर निर्भर हो गाया हुं.आज मै इस ब्लाग के जरिये इस बात का कनफेन्स कर रहा हुं कि इस पुरे मामले का जिम्मेदार मै खुद हुं औऱ जो कोइ भी इस ब्लाग को पड़ रहा हो वो कम से कम मुझ से थोड़ी बहुत तो सिख ले हि सकते है जो केवल इसे एक ब्लाग के दृष्टी से ये पड़ रहा है औऱ कोइ सिख लेना नही चाहता उसको मेरी शुभ कामना.