Saturday, August 28, 2010

सोंचते रह जाओगे...

आसान से लगने वाले सवालों के जवाब कितने कठिन होते है इसका उदाहरण आप को आज बताने जा रहा हूं.दरसर एक क्विज कांटेस्ट देख रहा था इस क्विंज कांटेस्ट का ये फाइनल मुकाबला था जिसमें तीन प्रतिभागी इस फानल राउंड में पहुंचे थे.जज को इन तीनो प्रतियोगी से तीन तीन सवाल पूछना था तथा जिसका उत्तर सबसे अच्छा होता वो ये फाइनल का विजेता होता. स्टूडियों में इन प्रतियोंगी के मां बाप भीई बहन और सारे दोस्त भी मौजूद थे और ये सभी इस प्रोग्राम को लाइव देख रहे थे.इस सब से दुर ये तीनो एक बंद कमरे में बैठे थे जजों ने बारी बारी से इन सभी को बुला कर एक ही प्रकार के सावल पूछे गये।


आप जानना चाहेंगे ये तीनों सवाल क्या थे वो तीनो सवाल इस प्रकार थे :

1.अगर इस दुनिया का चप्पा चप्पा हर एक चीज आप की हो .तो आप अपने किसी प्रिय दोस्त को क्या दोगे और कितना दोगे.

2. अगर आप लड़की होते तो इस स्टूडियों में बैठे आपके दोस्तों में से आप किस दोस्त के साथ फिजिकल रिलेशन रखना पसंद करोंगो और क्यों।

3.तीसरा और अंतिम सवाल था कि आगर साक्षात भगवान आपके सामने आये और कहे कि आज आपके माता –पिता दोनो की मौत तय लेकिन तुम्हारे पुण्य प्रताप के चलते दोनो में से किसी एक की जान आज बच सकती है आपको बताना हि पडेगा कि दोनो मे से किस की जान बख्स दू और किसकी जान लूं और क्यों.



इन तीनो सवालों का उत्तर देना अनिवार्य था तथा प्रतियोगी पलट कर जजों से सवाल भी नहीं कर सकते थे.इन तीनो सवालों का बारी बारी से तीनो प्रतियोगी ने जवाब भी दिया तथा एक प्रतियोगी जीता भी था.

अब आप सोंच रहे होंगो कि इस सवाल का जवाब क्या होगा लेकिन इससे पहले आप जरा सोचिए कि क्या होगा इसका जवाब क्योंकि इसके जवाब के लिए थोड़ा इंतेजार करना पड़ेगा.

Monday, August 23, 2010

अपना अपना वजूद...

कभी अपनो के बीच तो कभी अपने आस पास के लोगो को बीच अपनी वजूद का अपनी मौजूदगी का ऐहसास बहूत मुश्किल होता है. अपने आप को भीड़ से अलग करना.खास कर तब जब आप आपने लिए कुछ औऱ सोंच कर रखें हो और आप अपनी पहचान के लिए भटक रहें हो.जब आप को लगता है कि आप उन सामान्य लोगों में से नहीं हो.आप चाहते हो कि लोग आपको आपके नाम और काम से जाने आपकी अपनी एक छवी हो......लेकिन सवाल ये उठता है कैसे आप आपनी मौजूदगी का ऐहसास करायें कैसे अपने काम से अपनी टैलेंट से भीड़ से हटकर दिखे......
ये सवाल सुनने में जितना आसान है उतना ही करने में मुश्किल । इतना तो तय है कि अगर आप में टैलेंट है तो निश्चित तौर पर आप उन लोगों से अलग है लेकिन टैलेंट होना काफी नहीं होता.आपको भीड़ से अलग करने के लिए अपनी खुद की मार्केटिंग करनी भी आनी चाहिए.अपनी खुद की मार्केटिंग करना एक कला है जो सब में नहीं होता इसके लिए आपको आधूनिक चटूकारिता का अभ्यस्त होना होगा.आधुनिक चटूकारिता का मतलब आपको काम का पुरा श्रेय लेना से है औऱ उस श्रेय की सफलता को सहीं लोगो तक पहुंचा के तरिकों से हैं.ये जो आधूनिक चटूकारिता का काम है वो थोड़ा मुश्किल है क्योंकि मुझे लगता है टैलेंट तो अपने आप में पैदा भी किया जा सकते है लेकिन आधूनिक चटूकारिता तो जन्मजात गुण होता है जिसे आप अचनाक आपने आप में पैदा नहीं कर सकते....

कहते हैं कि किसी के होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता....लेकिन मेरा मानना है आपके होने ना होने का फर्क पड़ना चाहिए तभी आप अपना वजूद जिंदा रखा जा सकता है और अपनी वजूद को जिंदा रखने कि जद्दोजहद बहुत लंबी होती है ।

Tuesday, August 17, 2010

दोस्ती वोस्ती एक्सेक्ट्रा.......

मशहूर शायर बशीर बद्र साहब ने लिखा है कि “ परखना मत परखने में कोई अपना नहीं होता , देर तक आइने में चेहरा अपना नहीं होता ” अब बशीर साहब के हिसाब से किसी को पऱखना नहीं चाहिए अब यार मेरी बड़ी अजीब समस्य है कि मैं अपने दोस्तों के लिए जो करता है चाहे वो मेरा व्यवहार हो या दोस्ती निभाने के कायदे कानून हो और उम्मीद करता हूं कि बदले में उसकी भी सोच औऱ व्यवहार मेरे जैसे हो...लेकिन ऐसा संभव नहीं होता और मुझे बड़ा दुख होता है । मैं ये भी जानता हूं कि ऐसा जरुरी नहीं कि किसी के लिए आप निश्चल और साफ हो तो वो आप के लिए भी वैसा हि सोंचे। लेकिन एक उम्मीद तो होती है ना औऱ जब वह उम्मीद टूटती है तो बड़ा खराब लगता है ऐसा मेरे साथ अनेको बार हो चुका है फिर भी आज भी मैं अपने दोस्तों को अपने हिसाब से ढालने की कोशिस करता हूं। मैं यहां य़े नहीं कह रहा हूं कि मैं बहुत अच्छा दोस्त हूं लेकिन अपने समझ के हिसाब जो मुझे सहीं लगता है वो मैं करता हूं.....मेरे इसी व्यवहार के चक्कर में मेरी एक सीमित दुनिया बन गई है औऱ उसमें काफी कम लोग है जिसके साथ में कंफर्टेबल या सामान्य महसूस करता हूं ।
सोंचत हूं कि मुझे अपने आस पास के सभी लोगों के साथ दोस्ती बड़ानी चाहिए। लेकिन मेरी लाख कोशिस के बाद भी सामान्य ढंग से मैं उन लोगों के साथ सहज महसूस नहीं कर पाता. अब मैने इस बात के लिए अपने आप को समझा चूका हूं कि ये दोस्ती वोस्ती मेरे बस की बात नहीं. मेरी एक सीमित दुनिया है और यहीं मेरे लिए काफी है.कहने के लिए तो मैं आम लोगो से आज भी मिलता हूं और सामान्य आदमी की तरह पेश आता हूं लेकिन फिर भी मैं कहना चाहता हूं कि उनसे पुरी तरह से दिल नहीं जोड़ पाता।