Monday, August 23, 2010

अपना अपना वजूद...

कभी अपनो के बीच तो कभी अपने आस पास के लोगो को बीच अपनी वजूद का अपनी मौजूदगी का ऐहसास बहूत मुश्किल होता है. अपने आप को भीड़ से अलग करना.खास कर तब जब आप आपने लिए कुछ औऱ सोंच कर रखें हो और आप अपनी पहचान के लिए भटक रहें हो.जब आप को लगता है कि आप उन सामान्य लोगों में से नहीं हो.आप चाहते हो कि लोग आपको आपके नाम और काम से जाने आपकी अपनी एक छवी हो......लेकिन सवाल ये उठता है कैसे आप आपनी मौजूदगी का ऐहसास करायें कैसे अपने काम से अपनी टैलेंट से भीड़ से हटकर दिखे......
ये सवाल सुनने में जितना आसान है उतना ही करने में मुश्किल । इतना तो तय है कि अगर आप में टैलेंट है तो निश्चित तौर पर आप उन लोगों से अलग है लेकिन टैलेंट होना काफी नहीं होता.आपको भीड़ से अलग करने के लिए अपनी खुद की मार्केटिंग करनी भी आनी चाहिए.अपनी खुद की मार्केटिंग करना एक कला है जो सब में नहीं होता इसके लिए आपको आधूनिक चटूकारिता का अभ्यस्त होना होगा.आधुनिक चटूकारिता का मतलब आपको काम का पुरा श्रेय लेना से है औऱ उस श्रेय की सफलता को सहीं लोगो तक पहुंचा के तरिकों से हैं.ये जो आधूनिक चटूकारिता का काम है वो थोड़ा मुश्किल है क्योंकि मुझे लगता है टैलेंट तो अपने आप में पैदा भी किया जा सकते है लेकिन आधूनिक चटूकारिता तो जन्मजात गुण होता है जिसे आप अचनाक आपने आप में पैदा नहीं कर सकते....

कहते हैं कि किसी के होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता....लेकिन मेरा मानना है आपके होने ना होने का फर्क पड़ना चाहिए तभी आप अपना वजूद जिंदा रखा जा सकता है और अपनी वजूद को जिंदा रखने कि जद्दोजहद बहुत लंबी होती है ।

1 comment:

समयचक्र said...

बढ़िया विचार ...

ward verification hataaye.. .