Tuesday, August 17, 2010

दोस्ती वोस्ती एक्सेक्ट्रा.......

मशहूर शायर बशीर बद्र साहब ने लिखा है कि “ परखना मत परखने में कोई अपना नहीं होता , देर तक आइने में चेहरा अपना नहीं होता ” अब बशीर साहब के हिसाब से किसी को पऱखना नहीं चाहिए अब यार मेरी बड़ी अजीब समस्य है कि मैं अपने दोस्तों के लिए जो करता है चाहे वो मेरा व्यवहार हो या दोस्ती निभाने के कायदे कानून हो और उम्मीद करता हूं कि बदले में उसकी भी सोच औऱ व्यवहार मेरे जैसे हो...लेकिन ऐसा संभव नहीं होता और मुझे बड़ा दुख होता है । मैं ये भी जानता हूं कि ऐसा जरुरी नहीं कि किसी के लिए आप निश्चल और साफ हो तो वो आप के लिए भी वैसा हि सोंचे। लेकिन एक उम्मीद तो होती है ना औऱ जब वह उम्मीद टूटती है तो बड़ा खराब लगता है ऐसा मेरे साथ अनेको बार हो चुका है फिर भी आज भी मैं अपने दोस्तों को अपने हिसाब से ढालने की कोशिस करता हूं। मैं यहां य़े नहीं कह रहा हूं कि मैं बहुत अच्छा दोस्त हूं लेकिन अपने समझ के हिसाब जो मुझे सहीं लगता है वो मैं करता हूं.....मेरे इसी व्यवहार के चक्कर में मेरी एक सीमित दुनिया बन गई है औऱ उसमें काफी कम लोग है जिसके साथ में कंफर्टेबल या सामान्य महसूस करता हूं ।
सोंचत हूं कि मुझे अपने आस पास के सभी लोगों के साथ दोस्ती बड़ानी चाहिए। लेकिन मेरी लाख कोशिस के बाद भी सामान्य ढंग से मैं उन लोगों के साथ सहज महसूस नहीं कर पाता. अब मैने इस बात के लिए अपने आप को समझा चूका हूं कि ये दोस्ती वोस्ती मेरे बस की बात नहीं. मेरी एक सीमित दुनिया है और यहीं मेरे लिए काफी है.कहने के लिए तो मैं आम लोगो से आज भी मिलता हूं और सामान्य आदमी की तरह पेश आता हूं लेकिन फिर भी मैं कहना चाहता हूं कि उनसे पुरी तरह से दिल नहीं जोड़ पाता।

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